Moral stories / Bodh katha - हाथी और चिड़ियाँ की कहानी

Moral stories / Bodh katha हाथी और चिड़ियाँ की कहानी  The Sparrow And The Elephant चिंदरबन के जंगल में एक पेड़ पर घोंसले में चिऊ चिड़ियाँ और उसका पति काऊ दोनों एक साथ आनंद से रहते थे। कुछ दिन के बाद चिऊ ने अंडे दे दिए। दोनों बहोत ख़ुशी में थे। एक दिन काऊ चिऊ के लिए खाने का बंदोबस्त करने गया क्योंकि चिऊ अंडे से ने के लिए बैठी, वो उठ नहीं सकती थी। वही पेड़ के निचे से एक बड़ा हाथी हररोज तालाब में पानी पिने के लिए जाता था लेकिन वह बहुत बड़ा और अड़ियल होने से अजु बाजु के पेड़ पौंधो को नुकसान पहुंचता था, तभी उसे डरकर कोई उसे बोल नहीं पता था। उस दिन वह हाथी आया और चिऊ जहाँ बैठी थी वह पेड़ पर सूंड मरकर पेड़ हिला रहा था। तब चिऊ ने उसे कहा, "ओ, हाथी भैय्या कृपा करके पेड़ को नुकसान मत पहुँचाना मेरा घोंसला और उसमे अंडे है मेरे।" हाथी और चिड़ियाँ की कहानी   उसपर हाथी को बहुत गुस्सा आया उसका अहंकार जाग उठा, और चिऊ को बोला, "तुम्हारी इतनी हिम्मत के तुम मुझे बोल रही हो, इतनी पिद्दी सी होकर भी." और ऐसा कहकर उसने वह पेड़ जो जोर से हिलाया और वहां से चला गया। लेकिन हाथी ने पेड़ हिलाया उसमे चि...

विक्रम और बेताल की कहानी 07

विक्रम और बेताल की कहानी 07

साहसी कौन है?

समुन्दर के तट पर ताम्रलिपि नाम का एक नगर था। उसमे चन्द्रसेन नाम का एक पराक्रमी राजा राज करता था।  उसी राज्य में सत्वशील नाम का एक नौजवान नौकरी के लिए राजा के दरबार में कई बार चक्कर काटता रहता था ताकि राजदरबार में उसे कई नौकरी मिल जाये। लेकिन दरबार के सेवक उसे अंदर घुसने नहीं देते थे।

एक दिन सत्वशील, नगर के ऐसे ही भटक रहा था, तब संयोग से राजा उसी रास्ते जंगल में शिकार करने जा रहा था। सत्वशील ने सिपाहियों से पूछा की "राजा कहा पर जा रहे है।" सिपाहियों ने बताया की "वे शिकार करने जंगल जा रहे थे।" जंगल बहुत दूर था लेकिन सत्वशील थान ली थी आज किसी भी तरह भेट करनी चाहिए और वह दौड़कर राजा के पीछे-पीछे जंगल में चला गया।

जंगल जाते ही राजा से उसकी मुलाकात हुईराजा को आश्चर्य हुआ उसने सत्वशील से पूछा, " यहाँ कोई आस-पास बस्ती नहीं और इतना घाना जंगल है यहाँ पर तुम क्या कार रहे हो।" सत्वशील ने बताया, " ताम्रलिपि से आप के पीछे दौड़कर आपको मिलने यहाँ आया हु। राजा को बड़ा ही आश्चर्य हुआ और उसने कहा, "क्या चाहते हो हमसे और मेरे दरबार में क्यों नहीं जाते मिलने।" सत्वशील बोला, "बहुत बार आया था महाराज लेकिन आपके सेवको ने मुझे भीतर आने नहीं दिया, इसलिए मैं दौड़कर आपके पीछे यहाँ आया हु।"

राजा बोला, "बोलो क्या काम था हमसे।"  सत्वशील बोला, "महाराज, मैं दरबार में नौकरी करना चाहता हु आपकी सेवा करना चाहता हु।" राजा बोला, "ये मुहर ले-लो और दरबान को दिखाना, आज से तुम हमारे सेवक होंगे।" सत्वशील को बड़ा ही आनंद हुआ अगले दिन से ही नहीं वह उसी वक्त से राजा की सेवा करने लगा। देखते - देखते सत्वशील दरबार में अच्छा काम करने लगा। उसने राजा की मर्जी हासिल की, राजा उसके काम से खुश था। सत्वशील राजा का ख़ास सेवक बन गया।

एक दिन, राजा और सत्वशील किनारे पर टहल रहे थे। तब राजा ने उससे कहा, "सत्वशील हमे अपने राज्य को और समृद्ध और वैभवशाली बनाने के लिए हमे और व्यापर की जरुरत है इसलिए हमे इस समुन्दर के द्वीपों की खोज करनी चाहिए और उनसे संबंध बनाने चाहिए ताकि हम उनके साथ व्यापर करके  हम समृद्ध बन सके। और इसके लिए संकल्प और साहस की जरुरत है। सत्वशील बोला, "महाराज आप चिंता मत कीजिये मैं जाऊंगा वहाँ पूरा समुन्दर छानकर नए-नए द्वीप की खोज करूँगा।" राजा को बड़ी ही ख़ुशी हुई उसने सत्वशील को इस काम के लिए भेज दिया।

अगले दिन सत्वशील कुछ सैनिक लेकर द्वीपों की खोज करने समुन्दर में निकल पड़ा। दूर गहरे समुन्दर में वह चला गया, समुन्दर के बीचो बिच एक ध्वज दिखाई दिया। आस-पास कोई जमीन नहीं थी और बड़ा ही गहरा समुंदर था। ये ध्वज कहाँ से आया उसने सोचा कई समुन्दर के तल में कोई नगरी होगी। उसने आगे-पीछे सोचा नहीं और समुन्दर में कूद पड़ा उस ध्वज के तल का पीछा करते वह निचे उतर गया समुन्दर की गहराई में निचे एक सुन्दर नगरी थी वह उस नगरी में आया, बहुत ही अदभुत और भव्य दिव्य नगरी थी। वह हिरे जवाहरात और खजानो से सजी हुई थी। वह चलते-चलते महल में पंहुचा। महल में बहुत सारी सुंदर लड़कियां थी।  उनकी रानी बहुत सुन्दर थी, सत्वशील रानी से मिला। रानी को आश्चर्य हुआ की ये आदमी अपने राज्य में कैसे आया। उन्होंने सत्वशील को चालाकी से दूसरे रास्ते नगर से बाहर कर दिया। लेकिन वह मार्ग से ताम्रलिपि के तालाब से निकल आया था। तालाब से बाहर निकलकर सत्वशील सीधे राजा के पास गया।

वहां राजा सत्वशील के गुम होने पार शोक मना रहा था। सत्वशील को देखकर राजा आनंदित हो उठा। सत्वशील को राजा ने घूम होने का कारण पूछा, उसने राजा को पानी के अंदर की सारी बात बता दी।  अब राजा को भी उत्सुकता हुई उस नगरी को देखने की और उनको सत्वशील के साथ किये गलत बर्ताव के लिए सबक सीखाने की राजा, सत्वशील और उनके सैनिक उस ध्वज वाली जगह पर चले गए और उस अदभुत नगरी में गए और वह के लोगो से युद्ध कर उनको पराजित किया और वह राज्य जीत लिया और उनकी रानी का विवाह सत्वशील से करा दिया और सत्वशील को वह राज्य सँभालने भी दे दिया।

इतना कह कर बेताल ने विक्रम से पूछा, "राजन बताओ सत्वशील और राजा चन्द्रसेन दोनों में बड़ा साहसी कौन था।" राजा विक्रम ने जवाब दिया," दोनों में सबसे साहसी सत्वशील था। क्यों की सत्वशील ध्वज को देखकर समुन्दर में कूद पड़ा था। उसे आगे चलकर उसके साथ क्या होगा उसे पता नहीं था। लेकिन राजा को पता था की उसके साथ क्या होने वाला है। इसलिए जो अनजान परिस्थितियों से लड़ते है वह बड़े बहाद्दुर होते है इसलिए सत्वशील ही बहाद्दुर और साहसी था।"

राजा विक्रम की बात सुनते ही बेताल जोर से हंस पड़ा और फिर से जाकर पेड़ पे जा लटका। लेकिन राजा विक्रम दृढ़निश्चयी था। वह फिर पेड़ के यहाँ जाकर उस लटके प्रेत को उतारकर कंदे पर डालकर चल दिया।

क्रमंशः

 

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