Moral stories / Bodh katha
व्यापारी का पतन और उदय की कहानी हिंदी में
The Fall And Rise of A Merchant
Story
एक नगर में एक व्यापारी रहता
था। वह अपने काम बहुत कुशल था। उसी नगर के राजा ने उस व्यापारी को राज्य का प्रशासक
बना दिया। सारी जनता उसके काम से खुश थी, और राजा को भी बहुत प्रभावित किया था।
एक दिन उस व्यापारी ने अपनी
लड़की का विवाह तय किया। इस विवाह के अवसर पर व्यापारी ने एक बड़ा भोजन समारम्भ आयोजित
किया। इस भोजन समारम्भ में उसने राज परिवार से लेकर प्रजा को भी आमंत्रित किया था।
भोजन के दौरान उसने सभी को बहुत सम्मान दिया और सभी मेहमानों को आभूषण और उपहार दिए।
उस भोजन समारम्भ में राजमहल
में झाड़ू लगानेवाला राजघराने का एक सेवक भी था, वह भी इस भोजन समारम्भ में शामिल हुआ,
मगर गलती से वह एक ऐसी कुर्सी पर बैठ गया जो राज परिवार के लिए आरक्षित की गई थी। यह
देखकर व्यापारी को बहुत गुस्सा आया और उसने सेवक की कमीज़ पकड़ कर उसे भोजन समारम्भ से
धक्के दे कर बाहर निकाल दिया।
उस सेवक को बड़ी शर्मिंदगी महसूस
हुई और उसने व्यापारी को सबक सिखाने का सोच लिया।
एक दिन वही सेवक राजा के कक्ष
में झाड़ू लगा रहा था तब राजा को अर्धनिद्रा में देख कर उसने बड़बड़ाना शुरू किया, “कितने बद्तमीज़ है अपने प्रशासक,
रानी के साथ उन्होंने दुर्व्यवहार किया।”
यह सुन कर रहा अपने बिस्तर से
कूद पड़ा और सेवक से पूछा, "क्या सच में तुमने प्रशासक को दुर्व्यवहार करते देखा
है?"
सेवक ने तुरंत राजा के चरण पकडे
और बोला, "मुझे माफ़ कर दीजिये महाराज, मैं पूरी रात सोया नहीं हु, इसीलिए नींद
में कुछ भी बड़बड़ा रहा हूँ।
राजा ने कुछ बोला नहीं, लेकिन
राजा के मन में शक पैदा चुका था। उसी दिन से
राजा ने व्यापारी को राजमहल में घूमने पर पाबंदी लगा दी और उसके अधिकार कम कर दिए।
अगले दिन जब व्यापारी महल में
आया तो उसे संतरियों ने रोक दिया। यह देख कर व्यापारी बहुत आश्चर्य-चकित हुआ। तभी वहीँ
खड़े सेवक ने मज़े लेते हुए कहा, "सावधान संतरियों, जानते नहीं ये कौन हैं? ये बहुत
प्रभावशाली व्यक्ति हैं और तुम्हारी कमीज पकड़कर बाहर फिंकवा सकते हैं, जैसा इन्होने
मेरे साथ अपने भोजन समारम्भ में किया था।"
यह बात सुनते ही व्यापारी को सारा माजरा समझ में आ गया।
कुछ दिनों के बाद व्यापारी ने
उस सेवक को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया, उसका अच्छी तरह से स्वागत किया और उपहार
भी दिए, उसे भोजन में पंचपक्वान खिलाया। फिर उसने बड़ी विनम्रता से भोजन समारम्भ वाले
दिन के लिए क्षमा मांगते हुआ कहा की उसने जो भी किया गलत किया।
सेवक को भी भर के आया उसका मत
परिवर्तित हो गया। उसने कहा की न केवल आपने मुझसे माफ़ी मांगी, पर मेरी इतनी आव्-भगत
भी की। आप चिंता न करें, मैं राजा से आपका खोया हुआ सम्मान आपको वापस दिलाउंगा।
अगले दिन उसने राजा के कक्ष
में झाड़ू लगा रहा जब राजा को अर्ध-निद्रा में देखा तो फिर से बड़बड़ाने लगा “हे भगवान,
हमारा राजा तो ऐसा मूर्ख है की वह अपने स्नानगृह में खीरे खाता है”
यह सुनकर राजा क्रोध से भर उठा
और बोला, "मूर्ख सेवक, तुम्हारी ऐसी बोलने की हिम्मत कैसे हुई? तुम अगर मेरे कक्ष
के सेवक न होते तो तुम्हें नौकरी से निकाल देता।" सेवक ने दुबारा चरणों में गिर कर राजा से माफ़ी मांगी
और दुबारा कभी न बड़बड़ाने की कसम खाई।
उधर राजा ने सोचा कि, 'जब यह
मेरे बारे में ऐसे गलत बोल सकता है, तो अवश्य ही इसने प्रशासक के बारे में भी गलत ही
बोला होगा, जिसकी वजह से मैंने उसे बेकार में दंड दिया।'
अगले दिन ही राजा ने व्यापारी
से माफ़ी मांगी और राजमहल में उसकी खोयी प्रतिष्ठा वापस दिला दी।बोध:
१. हमें हर किसी के साथ सन्मान और सद्भाव से ही पेश आना चाहिए, चाहे वह व्यक्ति बड़ा हो या छोटा, आमिर हो या गरीब।
२. हमेशा याद रखें जैसा व्यवहार आप दूसरों के साथ करेंगे, वैसा व्यवहार कोई अपने साथ भी करेगा।
३. सुनी सुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए पूरी तरह से जाँच पड़ताल करके ही निर्णय लेना चाहिए।
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