Moral stories / Bodh katha - हाथी और चिड़ियाँ की कहानी

Moral stories / Bodh katha हाथी और चिड़ियाँ की कहानी  The Sparrow And The Elephant चिंदरबन के जंगल में एक पेड़ पर घोंसले में चिऊ चिड़ियाँ और उसका पति काऊ दोनों एक साथ आनंद से रहते थे। कुछ दिन के बाद चिऊ ने अंडे दे दिए। दोनों बहोत ख़ुशी में थे। एक दिन काऊ चिऊ के लिए खाने का बंदोबस्त करने गया क्योंकि चिऊ अंडे से ने के लिए बैठी, वो उठ नहीं सकती थी। वही पेड़ के निचे से एक बड़ा हाथी हररोज तालाब में पानी पिने के लिए जाता था लेकिन वह बहुत बड़ा और अड़ियल होने से अजु बाजु के पेड़ पौंधो को नुकसान पहुंचता था, तभी उसे डरकर कोई उसे बोल नहीं पता था। उस दिन वह हाथी आया और चिऊ जहाँ बैठी थी वह पेड़ पर सूंड मरकर पेड़ हिला रहा था। तब चिऊ ने उसे कहा, "ओ, हाथी भैय्या कृपा करके पेड़ को नुकसान मत पहुँचाना मेरा घोंसला और उसमे अंडे है मेरे।" हाथी और चिड़ियाँ की कहानी   उसपर हाथी को बहुत गुस्सा आया उसका अहंकार जाग उठा, और चिऊ को बोला, "तुम्हारी इतनी हिम्मत के तुम मुझे बोल रही हो, इतनी पिद्दी सी होकर भी." और ऐसा कहकर उसने वह पेड़ जो जोर से हिलाया और वहां से चला गया। लेकिन हाथी ने पेड़ हिलाया उसमे चि...

Moral stories / Bodh katha - जादुई आईना - Magic mirror

 

जादुई आईना

Moral stories / Bodh katha

जादुई आईना

Magic mirror

बहोत साल पुरानी कहानी है एक नगर के गुरुकुल में सुमेध नाम का युवक अध्ययन कर रहा था। वह अच्छी तरह से अपना अध्ययन कर रहा था। वहां के आचार्य अपने शिष्य सुमेध की सेवा -भाव से बहुत प्रभावित हुए। अध्ययन पूरा होने के बाद सुमेध को विदा करने का समय आया, तब गुरु ने अपने शिष्य सुमेध को आशीर्वाद के रूप में एक ऐसा दर्पण दिया, जिसमें व्यक्ति के मन के छिपे हुए भाव दिखाई देते थे।

उस दर्पण को लेकर सुमेध गुरुकुल से रवाना हुआ। उसने अपने मित्रों और परिचितों के सामने दर्पण रखकर परीक्षा ली। उसे सभी के मन में कोई कोई बुराई दिखाई दी। उसने अपने माता-पिता की भी दर्पण में देखा। माता-पिता के मन में भी उसे कुछ बुराइयां दिखाई दीं। यह देखकर उसे बहुत दुख हुआ और इसके बाद वह एक बार फिर गुरुकुल पहुंचा। 

गुरुकुल में सुमेध ने आचार्यजी  से कहा कि गुरुदेव मैंने इस दर्पण की मदद से देखा कि सभी के मन में कुछ कुछ बुराई जरूर है। तब आचार्य ने दर्पण का रुख सुमेध की ओर कर दिया। और उसने ने दर्पण में देखा कि उसके मन में भी अहंकार, क्रोध जैसी बुराइयां है। 

आचार्य ने सुमेध को समझाते हुए कहा कि यह दर्पण मैंने तुम्हें अपनी बुराइयां देखकर खुद में सुधार करने के लिए दिया था, दूसरों की बुराइयां देखने के लिए नहीं। जितना समय दूसरों की बुराइयों देखने में लगाया, उतना समय खुद को सुधारने में लगाया होता तो अब तक तुम्हारा व्यक्तित्व बदल चुका होता। 

हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि हम दूसरों की बुराइयां जानने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं। जबकि खुद को सुधारने के बारे में नहीं सोचते हैं। हमें दूसरों की बुराइयों को नहीं, बल्कि खुद की बुराइयों को खोजकर सुधारना चाहिए। तभी जीवन सुखी हो सकता है। इस पर सुमेध की आँखे खुल गयी उसने आचार्यजी से क्षमा मांगी और आनंद से वहां से चला गया। 

बोध: दोस्तों सबसे पहले अपनी खुद की बुराइयों को सुधारने की कोशिश करे और बाद में दूसरों की।

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