विक्रम और बेताल की कहानी 04
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विक्रम और बेताल की कहानी 04
जुए की लत
इलापुर नगर में महाधन नाम का एक सेठ और उसकी बीवी रहती थी। बहुत मन्नतों के बाद उनके घर एक गोपी नाम का लड़का पैदा हुआ। सेठ की बीवी बेटे को बहुत लाड-प्यार से रखती थी इसका नतीजा वह लड़का बिघड गया उसके गलत बर्ताव पे माँ पर्दा डाल देती थी। बड़ा होते होते वह जुआ खेलने लगा। इस बीच सेठ और उसकी बीवी परलोक सिधारे। और इधर गोपी ने अपना सारा धन जुए में खो दिया। जब पास में कुछ न बचा तो वह नगर छोड़कर चन्द्रपुरी नामक नगरी में जा पहुँचा। वहाँ हेमगुप्त नाम का साहूकार रहता था उसके पिता का दोस्त था उसके पास जाकर उसने अपने पिता का परिचय दिया और कहा कि मैं जहाज़ लेकर सौदागरी करने गया था। माल बेचा, धन कमाया; लेकिन लौटते में समुद्र में ऐसा तूफ़ान आया कि जहाज़ डूब गया और मैं जैसे-तैसे बचकर यहाँ आ गया।
उस सेठ के एक लड़की थी रत्नावती। सेठ को बड़ी खुशी हुई कि घर बैठे इतना अच्छा लड़का मिल गया। सेठ ने उस गोपी को अपने घर में रख लिया और कुछ दिन बाद अपनी लड़की से उसका ब्याह कर दिया। दोनों वहीं रहने लगे। अन्त में एक दिन वहाँ से बिदा हुए। सेठ ने बहुत-सा धन दिया।
रास्ते में एक जंगल पड़ता था। जंगल से चलते-चलते गोपी को धन का लालच आ गया, वहाँ आकर गोपी ने रत्नावती से कहा, “यहाँ चोर और डाकुओं का बहुत डर है, तुम अपने गहने उतारकर मुझे दे दो।" रत्नावती ने सारे गहने उतारकर उसको दे दिए। फिर रत्नावती को कुएँ में धकेलकर वहां से चला गया।
रत्नावती रोने लगी। एक मुसाफ़िर उधर से गुजर रहा था। जंगल में रोने की आवाज़ सुनकर वह वहाँ आया उसे कुएँ से निकालकर उसके घर पहुँचा दिया। रत्नावती ने घर जाकर माँ-बाप से कह दिया कि रास्ते में चोरों ने हमारे गहने छीन लिये और उन्हें लेकर गए और मुझे कुएँ में ढकेलकर, भाग गये। बाप ने उसे कहा कि तू चिन्ता मत कर। तेरा पति जीवित होगा और किसी दिन आ जायेगा।
उधर गोपी जेवर लेकर अपने नगर पहुँचा। उसे तो जुए की लत लगी थी। वह सारे गहने जुए में हार गया। उसकी बुरी हालत हुई तो वह बहाना बनाकर ससुराल चला कि उसे लड़का हुआ है, वहाँ पहुँचते ही सबसे पहले रत्नावती मिली गोपी डर गया लेकिन रत्नावती बड़ी खुश हुई। उसने पति से कहा, “आप कोई चिन्ता न करें, मैंने यहाँ कुछ नहीं बताया झूठ बताया की चोरों ने हमे लूटा और आपको गहने के साथ ले गए।” जो कहा था, सेठ अपने जमाई से मिलकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे बड़ी अच्छी तरह से घर में रखा।
कुछ दिन बाद रत्नावती गहने पहने सो रही थी, गोपी की नियत फिर पलट गयी उसने चुपचाप छुरी से उसे मार डाला और उसके गहने लेकर भाग गया। कहानी सुनाकर बेताल बोला, “राजा, बताओ कि रत्नावती ने गोपी के उस पापी और बुरी आदतों पर पर्दा डालकर और अपने माता पिता से झूठ बोलकर क्या सही किया या गलत?"
विक्रम ने जवाब दिया, " सुन बैताल, रत्नावती को जब पहली बार गहने लेकर कुए में धकेल दिया तभी रत्नावती को समझना चाहिए था की गोपी को उससे नहीं गहने और पैसों से प्यार था, जब किसी को पहली बार ठेस पहुँचती है तो दूसरी बार संभल लेता है। लेकिन रत्नावती ने गोपी के किये अत्याचार पर चुप और झूट बोलकर खुद और परिवार को संकट में लाया।
बैताल ने कहा, " वा राजन तुमने एकदम सही जवाब दिया लेकिन तुमने बात की है तो मैं अब चला।" और बैताल फिर से जाकर उसी पेड़ पर जा लटका।
क्रमशः
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